ये किसने कह दिया तुमसे, कि हम सरकारी गुलाम हैं
गुलाम हैं तो, मगर दौलत के हैं !!
...
आज उनके रुख की कुछ झलक-सी दिखी है
मगर अफसोस, वो भी धुंधली-धुंधली-सी है !
...
पंछी तक तो उड़ान भर रहे हैं, शहर से तेरे
गर बसर होता, तो हमारा होता कैसे ?
1 comment:
लगे रहो श्याम भाई, बसर तो होते रहेगा। :)
Post a Comment