तेरे एक इशारे पे, हम इल्जाम अपने नाम ले लेते
बेवजह, झूठे इल्जाम लगाने की जरुरत क्या थी ?
...
हमारी मौत की चाह में, क्यूँ दुआएं बर्बाद कर रहे हो दोस्त
वैसे भी रुसवाईयाँ, जीते-जी किसी मौत से कम नहीं होतीं !
...
वो भी बड़ा अजीब शख्स है 'उदय'
जेब में गिन्नियाँ हैं सोने की, औ जुबां पे मुफलिसी की बातें हैं !
3 comments:
हमारी मौत की चाह में, क्यूँ दुआएं बर्बाद कर रहे हो दोस्त
वैसे भी रुसवाईयाँ, जीते-जी किसी मौत से कम नहीं होतीं !..
बहुत सुंदर ......एक सुंदर रचना के लिए आपको बहुत -बहुत बधाई ..
सच कहा आपने, ऐसे अजीब शख्सों से बहुधा मुलाकात होती रहती है।
तेरे एक इशारे पे, हम इल्जाम अपने नाम ले लेते
बेवजह, झूठे इल्जाम लगाने की जरुरत क्या थी?
हमारी मौत की चाह में, क्यूँ दुआएं बर्बाद करते हो,
वैसे भी रुसवाईयाँ, जीते-जी किसी मौत से कम नहीं होतीं !
Satya vachan Shriman, sometimes I really feel like this.
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