कल उसने 'उदय', बेहद नुकीले शब्दरुपी दांतों से काटा है
उफ़ ! निशां को छोडिये, दर्द उम्र भर नहीं मिट पायेगा !!!
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अब रंज क्या करना 'उदय', जब चोर मालिक हो गए
बुनियाद को क्यों दोष दें, जब इमारत कच्ची हो गई !
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उन्ने हमारी जिंदगी में, कुछ इस कदर खलल डाला है 'उदय'
कि - कब सुबह होती है, औ कब शाम, मालुम नहीं पड़ता !!
1 comment:
सच कहा, शब्दों का घाव जीवनपर्यन्त रहता है।
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