उनके रिवाज भी बड़े बेहिसाब हैं 'उदय'
होते तो सामने हैं, पर बातें नहीं करते !
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तेज अंधड़ का मौसम तो कब का जा चुका है 'उदय'
उफ़ ! फिर भी लोग हैं, जो मुंडी झुकाए बैठे हैं !!
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लोग खामों-खां निजता की दुहाई दे रहे हैं 'उदय'
अगर ऐंसा ही है, तो पांव बाहर क्यूँ पड़े ?
1 comment:
BAHUT BADHIYA
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