बंजर जमीं को भी 'उदय', हम अक्सर कुरेदते रहे हैं
शायद कहीं कोई, अंकुर निकल आए !!
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बुलंदियां शोहरत की, यूँ ही नहीं मिलतीं 'उदय'
रूह भी चीखी है, औ जिस्म भी टूटा है !
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हमें तो नहीं, पर उसे जरुर हमारी वाह-वाही की दरकार है
बस, इत्ता-सा फर्क है 'उदय', आम और ख़ास में !!
1 comment:
वाह, बहुत खूब..
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