Thursday, April 19, 2012

मंजर ...

हमारे चेले-चपाटों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है 'उदय'
खुन्नस हमसे है, हमें गरिया के चुप हो जाया करो !
...
अब क्या बताएं हम 'उदय', अपने मिज़ाज के किस्से
बस, नफ़ा-नुक्सान से, कभी मतलब नहीं रखते !
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सामने होकर भी 'उदय', भले वो कुछ कहते नहीं हैं
पर, खामोशियों के मंजर, उन्हें खलते बहुत होंगे !

1 comment:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बाऊ जी,
नमस्ते!
सही तो है.... बस उन्हें गरिया के चुप हो जाया करो!!!

आशीष
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द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!