Friday, April 13, 2012

हाय-तौबा ...

विशेष टीप :- विगत दिनों एक "बोल्ड कविता" पर खूब हाय-तौबा पढ़ने को मिली ... पता नहीं वह "बोल्ड कविता" है भी या डिलीट कर दी गई ... किन्तु कुछेक बुद्धिजीवियों की सोच व विचारधारा / हाय-तौबा ... से भी कुछ सीखने को मिलता है ... मैं तो इतना ही कहूंगा कि जो विरोध हुआ वह जायज नहीं था क्योंकि उससे भी जियादा बोल्डनेस पढ़ने को मिलती रही है, और शायद आगे भी पढ़ने मिले ... मैंने उस "बोल्ड कविता" से भी अधिक "बोल्ड कविता" पढी है जिसकी खूब सराहना भी हुई है ... चूंकि कभी कभी मुझे भी कुछ "भूत जैसा" कुछ सवार हो जाता है तो मैं भी "बोल्ड टाईप" का कुछ लिखता रहा हूँ ... और कभी कभी कुछेक मित्रों के आग्रह / सुझाव पर उसे हटाना भी पडा है किन्तु किसी के विरोध पर कभी कुछ नहीं हटाया ... वजह यह है कि हरेक लेखक में विरोध सहने की शाक्ति भी होना चाहिए ... खैर, प्रवचन बंद करते हुए असल मुद्दे पे आते हैं ... वैसे उस "बोल्ड कविता" में ऐंसा कुछ ख़ास बोल्ड नहीं था जिसका विरोध किया ही जाए क्योंकि आज के वर्त्तमान दौर में कुछ बातें तो इतनी कॉमन हो गई हैं कि उन्हें बच्चे-बच्चे भी समझने लगे हैं ( यहाँ पर बच्चे-बच्चे से तात्पर्य उन बच्चों से नहीं है जो वास्तव में अभी बच्चे हैं ) ... वैसे -
०१ - विस्पर, कंडोम, व अन्य शक्तिवर्धक दबाइयों के विज्ञापनों को देखकर बच्चे जब उनके बारे में सवाल करते हैं तब हम उन सवालों के गोल-मोल जवाब देकर बचने का प्रयास तो कर सकते हैं किन्तु उनके सही जवाबों से हम उन्हें ज्यादा देर दूर नहीं कर सकते !
०२ - टेलीविजन व फिल्मों के चुम्बन, आलिंगन व रात्री मिलन के अर्धनग्न दृश्यों को देख-देख कर वो क्या मतलब समझ रहे हैं, क्या हम इससे इंकार कर सकते हैं ?
०३ - और फिर, फेसबुक व ब्लोग्स पर कोई बच्चे तो हैं नहीं, चलो माना कि भाई, बहन, माँ, बाप, बेटे, बेटियाँ जरुर हैं जो सभी इन शब्दों व भावों से भलीभांति परिचित हैं ... और अगर परिचित नहीं हैं तो उन्हें परिचित होना चाहिए !
०४ - और यदि कोई कविता या लेख में सम्भोग का हू-ब-हू साहित्यिक चित्रण कर भी देता है तो इसमें हाय-तौबा मचाने जैसी क्या बात है ... फिल्मों व टेलीविजन सीरियलों के घोर अश्लील चित्रांकन पर हाय-तौबा क्यों नहीं ? मंदिरों व एतिहासिक स्थलों पर लगी सम्भोग मुद्रा की मूर्तियों पर हाय-तौबा क्यों नहीं ? शिवलिंग पूजन पर हाय-तौबा क्यों नहीं ?
( तो प्रस्तुत है एक और बोल्ड कविता जो विगत दिनों शिकार हुई "बोल्ड कविता" तथा बहुत पहले हिट हुई "महा बोल्ड कविता" के शब्दों के आधार पर रची गई एक और सवालिया कविता ... )

हाय-तौबा ...
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एक दिन, एक कवियित्री ने -
लिंग
हस्तमैथुन
वीर्य
जैसे जटिल शब्दों को पिरोकर
एक रचना रची, और रचते ही -
अमर कर ली !
खूब वाह-वाही भी बटोरी !!
न सिर्फ पुरुषों की वरन महिलाओं की भी !!!
चहूँ ओर
तारीफ़-पे-तारीफ़ होती रही !
क्यों, क्योंकि -
वह रचना कवियित्री ने रची थी !!
ठीक कुछ इसी तरह, एक दिन
हमने भी एक रचना -
चुम्बन
आलिंगन
समागम
जैसे सरल व सहज शब्दों के सांथ रच दी
जो
अश्लील मान ली गई !
और
पूरी की पूरी रचना ... नकार दी गई !!
एक बोल्ड पर जय जयकार
और दूसरी बोल्ड पर हाय-तौबा ...
जय हो ... बुद्धिजीवियों की ... जय हो !!!

4 comments:

shyam gupta said...

यह कविता तो कुछ बोल्ड नहीं है जी....केवल इन्गित है..."---रहस्य" नहीं है..अन्गोपान्ग वर्णन भी नहीं है....च्च..च्च..च्च...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुशील कुमार जोशी said...

"बोल्ड है सब कुछ यहां"
ऎसा एक ब्लाग बनवाइये
सारे बोल्ड लोगों की चर्चा
उस मंच पर करवाइये
जिसकी हिम्मत ना हो
बोल्ड हो पाने की
उसका मुँह काला कर
जंगल में छोड़ आइये ।

प्रवीण पाण्डेय said...

समझ समझ की बात है..