Friday, April 6, 2012

मंजर ...

टुच्चों
लुच्चों
चोर-उचक्कों के घर
रोज
खूब खिचड़ी पक रही है 'उदय' !
और
अच्छे-सच्चों के घर
अक्सर
कभी रोजे, तो कभी उपवास के
हैं बहानों के मंजर !!

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत रचना.

परमजीत सिहँ बाली said...

सही कहा..बढिया रचना।

प्रवीण पाण्डेय said...

क्या करें यही हिट हो रहा है।