Wednesday, March 28, 2012

किरदार ...

न कर गुमां, कि ऊंची हवेली आज तेरी शान है
सच ! महलों की शान, खँडहर बयां कर रहे हैं !
...
क्या गजब किरदार है उसका 'उदय'
पीठ पे गाली, सामने पाँव छूता है !!

2 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

खड़ा होता रूबरू धनुष की तरह
पलट के भौंकता जैसे तीर छूटा है!

mridula pradhan said...

bahot achche......