Monday, March 26, 2012

जुनून ...

गर मौक़ा पडा तो, बाअदब हमें गुलामी क़ुबूल है
उफ़ ! भृष्टाचार पे अंकुश, हमें कतई नहीं मंजूर है !
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मेरी रातें भी दिन जैसी ही हैं
फर्क है तो, तनिक अंधेरा है !
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खुद छापो और खुद बांटो, ये शौक नहीं जुनून है
नये स्वयंभू लेखक की, एक छोटी-सी पहचान है !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

नये काल के नये संदर्भ विकसित हो रहे हैं।