Sunday, March 25, 2012

जुनून-ए-लोकपाल ...

है उम्र का तकाजा, सठिया गया हूँ मैं
फिर भी मेरे नसीब में सत्ता की डोर है !
...
सच ! अपने अपने ताज-ओ-तख़्त संभालो दिल्ली वालो
जुनून-ए-लोकपाल, चिंगारी नहीं है, धधगती आग है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

रह जायें या रह रहकर जागें..