सच ! घने तूफ़ान से गुजरे, बड़े ईमान से गुजरे
तेरे साँसों के तूफाँ ने, हमें बेईमान कर डाला !!
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कभी औरत, तो कभी पुरुष, खुद को गुलाम कहते फिरे है
उफ़ ! क्या माजरा है, कोई खुद को मालिक नहीं कहता !!
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लो, इसे कहते हैं कुछ न कर के भी कुछ कर लेना
खामोशियों में भी, हमने तुमसे ढेरों बातें की हैं !!!
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उफ़ ! ये तूने शर्त रखी है, या सजा दी है
क्या खामोश रहकर भी बातें होती हैं ??
1 comment:
सजा उन खामोशियों की,
छोड़ कर जिनको यहाँ हम..
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