न जीवन की डोर उधर है, न जीवन की डोर इधर
सच ! जिसको देखो, वो कटपुतली-सा नाचे बस है !!
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कौन जाने, इस जग में, क्या कीमत है उसकी ?
जो जिस दाम, बिक जाए, कीमत है उसकी !!!
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अब कुछ बचा नहीं है, इसलिए पसरा सन्नाटा है
कहो, क्या ढूँढते हो 'तुम' अब भी इस सन्नाटे में ?
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अब क्या करूँगा, मैं होकर खुद का
जब तेरा होकर भी, तेरा हो न सका !
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सच ! न तो मैं उसका, औ न ही वो मेरा है
फिर भी, मैं उसका और वो मेरा क्यूँ है ?
4 comments:
बहुत खूब...
बढिया और बेहतरीन ... बधाइयां
Yahee sach hai!
बस यही होता है..
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