'खुदा' जाने, क्यों ? किसी की रंजिशों में नाम है मेरा
ठीक ही है, इसी बहाने शहर में अजनबी नहीं हैं हम !
...
तेरी हाँ, और न ही अब रंज होगा तेरी ना पे
उफ़ ! होनी थी मुहब्बत, हो गई है !!
...
नींद भी सोने कहाँ देती है हमको रात में
अब तुम ही कहो -
किस घड़ी, तुम होते नहीं हो ख़्वाब में ?
...
बाबू, पीए, चपरासी, खेल रहे हैं, लाखों और करोड़ों में
तो क्या हुआ ?
बड़े साहबों का नाम लिखा है, स्वीस बैंक के खातों में !!
...
न जाने क्यूँ, वो आज दस्तक दे रहा है 'उदय'
कल तक हमें जिसका, इंतज़ार था !
No comments:
Post a Comment