Thursday, December 15, 2011

अब हंगामा जरुरी है !

इंसा हो रहे बहरे !
कौमें हो रहीं बहरी !
सियासतें -
भी हो गईं हैं, बहरी !

अब
कहाँ फुर्सत किसी को है
जो
बातें सुन लें -
गरीब
मजदूर
किसान
असहाय, निसक्त व
बिलखती अबला नारियों की !

जिसे देखो, वही -
मस्त है, मदमस्त है !
मस्ती में झूम रहा है !
बहरे हो गए हैं -
बहरे हो रहे हैं लोग
सच ! अब हंगामा जरुरी है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अशक्त की शक्ति, उनका स्वर बन किसी न किसी को तो आगे आना होगा।