संग बांटे खुशी, न सोचें कौन अपना, कौन पराया है !
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हर पहर प्रार्थना को, हाथ उठते नहीं हमारे
'यीशु' जानता है, सुबह-शाम के मजदूर हैं हम !
'यीशु' जानता है, सुबह-शाम के मजदूर हैं हम !
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बन के 'सांता क्लाज', आओ घूमें फिरें
जो भी मिल जाए हमें, खुशियाँ बांटे उसे !
जो भी मिल जाए हमें, खुशियाँ बांटे उसे !
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'क्रिसमस' की बधाई को, बड़े बेताब थे हम
मगर जालिम, बड़ा खामोश निकला !
मगर जालिम, बड़ा खामोश निकला !
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दीवार पे रौशनी की जगमगाहट भांप के तुम
मेरे दिल के अंधेरे, क्यूँ भूल बैठे ?
2 comments:
चलते हैं ... अब तक मैं मम्मा सांता रही ... झोली से कईयों को सपने दिए , यात्रा जारी रहे
खुशी सभी को मिलती जाये..
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