Sunday, December 25, 2011

बन के 'सांता क्लाज', आओ घूमें फिरें ...

आओ, चलो बन जाएं आज, हम सब 'सांता क्लाज'
संग बांटे खुशी, न सोचें कौन अपना, कौन पराया है !
...
हर पहर प्रार्थना को, हाथ उठते नहीं हमारे
'यीशु' जानता है, सुबह-शाम के मजदूर हैं हम !
...
बन के 'सांता क्लाज', आओ घूमें फिरें
जो भी मिल जाए हमें, खुशियाँ बांटे उसे !
...
'क्रिसमस' की बधाई को, बड़े बेताब थे हम
मगर जालिम, बड़ा खामोश निकला !
...
दीवार पे रौशनी की जगमगाहट भांप के तुम
मेरे दिल के अंधेरे, क्यूँ भूल बैठे ?

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

चलते हैं ... अब तक मैं मम्मा सांता रही ... झोली से कईयों को सपने दिए , यात्रा जारी रहे

प्रवीण पाण्डेय said...

खुशी सभी को मिलती जाये..