Tuesday, December 20, 2011

एक नई इंकलाबी चाहिए !!

रोज हो रही हैं पार, हदें और सरहदें
ऐंसे बेलगाम दरिंदों के सिर कलम होने चाहिए !

सरेआम जो खुद का सौदा हैं कर रहे
ऐंसे बेईमानों को दोजख नसीब होना चाहिए !

भूल जाओ उनको, जो भूल गए हैं तुम्हें
ऐंसे मौकापरस्तों को, गद्दार कहना चाहिए !

सिर पे कफ़न बाँध, जो घर से निकलते रोज हों
आज मेरे मुल्क को, ऐंसे ही मसीहा चाहिए !

कब तलक जीते रहें, हम झूठें दिलासों पर 'उदय'
अब मेरे मुल्क में एक नई इंकलाबी चाहिए !!

1 comment:

kshama said...

सिर पे कफ़न बाँध, जो घर से निकलते रोज हों
आज मेरे मुल्क को, ऐंसे ही मसीहा चाहिए !
Bahut badhiya!