रोज हो रही हैं पार, हदें और सरहदें
ऐंसे बेलगाम दरिंदों के सिर कलम होने चाहिए !
सरेआम जो खुद का सौदा हैं कर रहे
ऐंसे बेईमानों को दोजख नसीब होना चाहिए !
भूल जाओ उनको, जो भूल गए हैं तुम्हें
ऐंसे मौकापरस्तों को, गद्दार कहना चाहिए !
सिर पे कफ़न बाँध, जो घर से निकलते रोज हों
आज मेरे मुल्क को, ऐंसे ही मसीहा चाहिए !
कब तलक जीते रहें, हम झूठें दिलासों पर 'उदय'
अब मेरे मुल्क में एक नई इंकलाबी चाहिए !!
1 comment:
सिर पे कफ़न बाँध, जो घर से निकलते रोज हों
आज मेरे मुल्क को, ऐंसे ही मसीहा चाहिए !
Bahut badhiya!
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