सवाल यह नहीं है
कि -
क्या मिला है मुझे, तुमसे !
सवाल यह है
कि -
मैंने, क्या दिया है तुम्हें ?
सवाल -
उत्तर का भी नहीं है
सवाल है -
सोचने
समझने
महसूस करने
और मनन करने का !
यदि आज भी हम, निरुत्तर रहे
तो फिर हम
खोये रहेंगे, उलझे रहेंगे
इन्हीं
छोटे-मोटे सवालों में
कि -
क्या दिया तुमने मुझे
और क्या दिया मैंने तुम्हें !!
1 comment:
जहाँ बस देने का निश्चय किया हो, वहाँ कुछ भी मिल जाना प्रसाद ही है।
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