अपुन भी पुस्तक लिख रहा हूँ पुस्तक का टाइटल है - "क्या प्यार इसी को कहते हैं ?" ... इसी पुस्तक के कुछ अंश -
"...
नेहा - आजा यार, क्यूँ टेंशन ले रहा है देखते हैं जो होगा देखा जाएगा, वैसे भी "किस" लेने या देने की ही तो बात है तू काय को टेंशन ले रहा है ... अगर टेंशन किसी को लेना चाहिए तो निधी को लेना चाहिए, क्योंकि वह एक लड़की है ... और तू है कि तू टेंशन में है और वह तुझे देख देख के मजे ले रही है ... एक काम कर, तू मन बना ले, किसी पिक्चर का "किस" सीन याद कर, और याद करते करते "किस" ले लेना या दे देना !
प्रेम - नेहा तू भी यार पिक्चर और हकीकत में जमीं आसमान का अंतर होता है, और तू तो जानती है किसी और लड़की के छूने मात्र से मेरा क्या हाल होता है ... क्या किया जाए, कुछ तो आज तय करना ही पडेगा !
नेहा - मैं एक दोस्त होने के नाते तुझे यह ही सलाह दे सकती हूँ कि तुझे डरने की जरुरत नहीं है, तू ये डिसाइड कर ले कि - तू "किस" देगा या लेगा, फिर मैं तुझे कुछ हिंट देती हूँ, हालांकि मुझे भी कोई प्रेक्टिकल अनुभव नहीं है यह तू भी जानता है !
प्रेम - अच्छा ये बता मुझे क्या करना चाहिए ?
नेहा - मेरी तो सलाह यह है कि तुझे ही "किस" करनी चाहिए !
प्रेम - अब जैसा तू बोलती है वैसा मान लेता हूँ ... वैसे भी मैं लड़का हूँ इसलिए मुझे ही "किस" करना चाहिए ... मैं मन बना रहा हूँ और तू मुझे सोच समझ कर ऐंसे हिंट दे ताकि निधी के सामने मुझे शर्मिन्दा न होना पड़े !
नेहा - ये हुई न कोई बात ... चल एक काम कर, थोड़ी देर के लिए तू सोच कि मैं निधी हूँ और तेरे सामने खड़ी हूँ बता कैसे "किस" करेगा !
प्रेम नाक-मुंह सिकोड़ते हुए हिम्मत कर नेहा को निधी समझ कर आगे बढ़ता है किन्तु उसके सामने पहुंचते ही उसके हाँथ कांपने लगते हैं ...
नेहा - अरे बुद्धू, तू ऐंसे ही डरेगा तो कैसे "किस" करेगा ... हिम्मत कर, और बिना डरे आके ले ले "किस" !
प्रेम एक बार फिर हिम्मत कर नेहा को निधी समझ "किस" करने की कोशिश करता है किन्तु फिर से वह सहम के रह जाता है, इस बार नेहा को गुस्सा आता है और ...
... "
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