अपुन भी पुस्तक लिख रहा हूँ पुस्तक का टाइटल है - "क्या प्यार इसी को कहते हैं ?" ... इसी पुस्तक के कुछ अंश -
" ...
प्रेम - बस अभी अभी आया हूँ लगभग पंद्रह मिनट हुए होंगे ... चूंकि तुम गहरी नींद में थी इसलिए तुम्हें डिस्टर्व करना उचित नहीं समझा और यहाँ कंप्यूटर चालू कर फेसबुक पर कुछ नया पढ़ने बैठ गया !
नेहा - वाह, क्या बात है आजकल तू फेसबुक पर भी ... क्या माजरा है यार, कुछ बताता क्यूँ नहीं ... चल छोड़ ये बता क्या मिला तुझे फेसबुक पर !
प्रेम - बस अभी अभी एक युवा शायर की दो पंक्तियाँ पढ़ रहा था ... सुन तू भी क्या लिखा है शायर ने -
"सच ! हमने यूँ ही कह दिया, क्या माल है
वो पलट के आ गए, कहने लगे खरीद लो !"
यार नेहा ये बता, क्या है इसका मतलब, लाइनें तो बहुत ही इंटरेस्टिंग लग रही हैं किन्तु कुछ समझ से परे हैं !
नेहा - यार रुक मैं फ्रेस होके आती हूँ, चाय पिएगा या नहीं ... अब हाँ या न क्या, मेरे सांथ पी लेना, जा शंभू काका को बोल चाय के लिए तब तक मैं बाथरूम से आती हूँ !
लगभग पांच मिनट में नेहा फ्रेस होकर बाथरूम से निकली तब तक चाय भी आ गई थी, चाय पीते पीते ...
नेहा - दिखा कहाँ लिखी हैं लाइनें, मैं भी तो देखूं ज़रा ... वाह क्या बात है -
"सच ! हमने यूँ ही कह दिया, क्या माल है
वो पलट के आ गए, कहने लगे खरीद लो !"
यार प्रेम ये तो बहुत ही गंभीर टाईप की लाईने, आई मीन शेर-शायरी लग रही हैं, ये अपुन लोगों के समझ से सचमुच परे है, पर हैं इंटरेस्टिंग ... माल ... खरीद लो ... चल छोड़ जाने दे, किसी दिन दिमाग खपायेंगे, आज सुबह सुबह मूड नहीं है और वैसे भी आज सन्डे है कौन मगज मारी करे ... बता क्या प्रोग्राम है आज !
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