Wednesday, November 30, 2011

फर्क ...

किसी के होने, न होने से
फर्क नहीं पड़ता !
फर्क पड़ता है
तुम्हारे होने, न होने से !
तुम्हारे -
हँसने
मुस्कुराने
चहचहाने
खिलखिलाने ...
से फर्क पड़ता है मुझे
क्यूँ, क्योंकि -
तुम, तुम नहीं, मैं हूँ ... !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्ततः जीवन स्वयं में सिमट जाता है।