खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !!
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लो मियाँ, मुंह खुद-ब-खुद मीठा हो गया
उन्हें देखते ही, मुंह में पानी आ गया !!
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ये करतब देखे हुए हैं, शायद यहाँ या कहीं और
सच ! कलम की, गजब जादूगरी है !!
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क्या खूब, ठोक-ठोक के पीटा है
लोहे का टुकड़ा, चीमटा हुआ है !
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आई लव यू, लिख कर हमने एस एम एस किया है
अभी जवाब आया नहीं है, उसे अंग्रेजी नहीं आती !
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इसका मतलब यह नहीं है कि - जान दे देंगे
तुम पे मरते हैं, मतलब तुम्हारे सांथ मरेंगे !
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हुजुर, क्या आपके गुरु, बादशाह औरंगजेब के जमाने के हैं
जो घर से निकलते तो हैं, पर बिना हाथी के नहीं !!
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साहित्यिक मार्केट में अपुन ने भी, एक दुकान लगा ली है 'उदय'
शब्द दिल की क्यारियों में फले-फूले हैं, बस ISI मार्का नहीं है !!
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कल तक खूब गुमां था उन्हें, अपनी चाहतों पर
अब कहते फिरे हैं, मुहब्बत अच्छी नहीं होती !
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नजर चुरा के देख रहे थे, देखते देखते किसी ने देख लिया
उफ़ ! यही बात कल तुमने कही थी, आज सब कह रहे हैं !
3 comments:
खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !! acchi prstuti...
बहुत खूब।
सरदार जी! नमस्कार,
दुकान साहित्य की खूब चलेगी. आप को I S I मार्क की क्या आवश्यकता? आपतो पहले से ही C G M हैं इसके. आपके पास तो बहुत पहले से ही है यह - Indian Saahitya Industry (I S I). अच्छी रचना.
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