मैं यह कविता सोते सोते लिख रहा हूँ
आधे घंटे से बिस्तर पे करवटें बदल रहा हूँ
आँखों में नींद आने जैसी होती है
तब ही प्रियंका मेरी आँखों में उतर जाती है
मैंने क्या बिगाड़ा है उसका, कुछ भी तो नहीं
फिर भी पता नहीं क्यूं वो मुझे सोने नहीं देती है
कहती है तुम -
मुझे देखते क्यों नहीं हो
मुझे दिलो जां से चाहते क्यों नहीं हो
क्यों तुम मुझे सांथ घुमाते-फिराते नहीं हो
अब क्या कहूं, मैं तो चाहता हूँ
पर, वो दिन में मिलती कहाँ है, और रात को भी
बस तब आती है, जब मैं सो रहा होता हूँ
आती भी है तो आ जाए, मैंने मना कब किया है
आकर चुप-चाप मेरे बाजू में सो जाए
जो करना है कर ले, पर मुझे सोने दे, पर मानती नहीं है
कहती है, तुम कैसे सो सकते हो, मुझे सुलाए बगैर
मैं उससे तंग आ गया हूँ
एक तो सोने नहीं देती
और जब सो जाता हूँ तो, फिर जगने नहीं देती
सो जाती है मुझसे लिपटकर, सिमटकर
फिर न खुद उठती है, और न मुझे उठने देती है
अब बताओ, क्या करूँ, क्या न करूँ
उफ़ ! ये प्रियंका !!
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