Monday, October 24, 2011

... एक ईमानदार कोशिश तो की जाए !

जी चाहता है मेरा भी, दीप जलाऊँ
तुम होते, तो शायद दीवाली होती !
...
परवाह नहीं है कि - क्यूँ छपते नहीं हैं हम
अभी तो लिख रहे हैं फुर्सत में नहीं हैं हम !
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न जाने कब, जी ने चाहा था कि तुझसे दूर हो जाऊं
उफ़ ! 'रब' ने सुनी तो सिर्फ इत्ती सी सुनी !!
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इतना भी नहीं हूँ, मैं दूर तुमसे यारा
जब चाहे तब मिलो, हंस कर मुझे मिलो !
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सच ! सुनते हैं, बहुत खूबसूरत हैं वो
बिना देखे, हम कैसे फैसला कर लें !
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फना होने के भय से, जो सहमे हैं घरों में
उन्हें फिर रास्ते कैसे, और मंजिलें कैसी !
...
दुकानदार भी कमजोर लग रहा है 'उदय'
सोना छोड़, पीतल बेच रहा है !!
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सच ! बहुत संगदिल हुआ है यार मेरा
मेरी सुनता नहीं है, खुद ही कुछ कह रहा है !
...
सच ! ऐंसा नहीं कि हम सुधर नहीं सकते
पर, एक ईमानदार कोशिश तो की जाए !
...
जी तो चाहता है, कि फना हो जाऊं
पर कोई तो हो जिस पे एतवार करूं !

1 comment:

संगीता पुरी said...

सही है ..दीपावली की शुभकामनाएँ !!