Friday, October 14, 2011

... कुछ भी तो नहीं हूँ !!

मेरा कद उतना ऊंचा हो, कि तुझे गले लगा सकूं
वरना ! आसमानी ऊँचाई का, मैं करूंगा क्या !!
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सटका हुआ दिमाग है, कुछ तो कहना चाहता है
रंज कर भी लें मगर, आसमान छूना चाहता है !
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सोचने में हर्ज क्या है, जब देश में जनतंत्र है
जब नहीं होगा, तब कुछ और सोचेंगे हम !!
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दिया, लिया, दिया, दिया, लिया, दिया, दिया
उधार, उधार, उधार, उधार, उधार, उधार !!!
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जब से, मुल्क में चोरों की बादशाहत हुई है
सच ! सुनते हैं अंधेरों से रौशनी गुम हुई है !
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अगर होता तो, मैं 'खुदा' होता
नहीं हूँ तो, कुछ भी तो नहीं हूँ !
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जाने कब, अब ये सिलसिला थम पायेगा
हर हांथों में हैं मशालें, इंकलाब तो आयेगा !
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मुश्किल घड़ी में, आज हमें खुदी को आजमाना है
कहीं ऐंसा हो, पाक इबादत में खलल पड़ जाए !
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ये हमारी उस्तादी की तौहीन होगी 'उदय'
गर किसी और की शान में कसीदे पढ़ दें !
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बड़ी मुश्किल से कल खुद को घाटे से बचाया था
आज फिर एक दोस्त व्यापारी बन के आया है !

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