Friday, September 30, 2011

चवन्नी - अठन्नी !!

मैं कल ही, गाँव से शहर आया था
चाय पीकर
दुकानदार को चवन्नी टिकाया था
दुकानदार चवन्नी देख कर
पहले तो मुस्काया था
फिर धीरे से घवराया था !
मैं भी, उसे देख कर
अचरज में पड़ गया
सोचा, मुझसे क्या गुनाह हो गया
अरे भाई, कुछ न कुछ तो हुआ ही था
तब ही तो वह
चवन्नी देख के सन्नाया था
थोड़ी देर, वो मुझे, मैं उसे, देखता रहा
फिर वह बोला -
क्यूं मियां, आज-कल
मंगल गृह की सैर खूब कर रहे हो
और धरती से बेखबर चल रहे हो !
चवन्नी तो बंद हुए एक अर्सा हो रहा है
और आपका -
आज भी चवन्नी से खर्चा चल रहा है !!
उसकी बातें सुन मैं सन्न रह गया
देख चवन्नी हाँथ में खिन्न रह गया
दूजा हाँथ जेब में डाला तो -
फिर से एक चवन्नी और निकल आई
फिर क्या था
चवन्नी देख देख मन प्रसन्न हो गया !!
मैंने कहा -
मियाँ आज तो रख लो
कल का कल देखेंगे, या फिर
आज की चाय उधार समझो
कल बैठ कर हिसाब-किताब कर लेंगे
कल तक हम
जरुर, चवन्नी की अठन्नी कर लेंगे !!

4 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

uday bhai abhtrin andaaz me vyngy kiya hai lekin udhaar prem ki qenchi hai ...akhtar khan akela kota rajstan

Rajesh Kumari said...

bahut khoob sateek kataksh.

Deepak Saini said...

बहुत खूब

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब।