Friday, September 30, 2011

... एक बेईमान, दूजे की शान है !

उफ़ ! एक अर्थशास्त्री को दूसरा निपटा रहा है
प्रधानमंत्री बनने के लिए रास्ता बना रहा है !
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पर्दा उठा, पर्दा गिर गया, फिर भी खेल जारी है
राजा, कनिमोझी के बाद, चिदंबरम की बारी है !
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दफ्न कर के भी, कोई खुश नहीं है 'उदय'
कब्र पे फूल चढ़ा चढ़ा के, मुस्कुरा रहा है !
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सिद्दत से हमें चाह थी, कोई मुरीद हो मेरा
कोई मिल गया है आज, सपना हुआ पूरा !
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किसी ने ख़त मेरे नाम लिख के रख छोड़े थे
आँख नम हुईं, वो सांथी अब दूजे जहां में है !
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वक्त के हांथों कोई मजबूर हो गया
लड़ते लड़ते ज़रा कमजोर हो गया !
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कौर चबा पाना भी अब मुश्किल हुआ है
उफ़ ! ठूंस-ठूंस के जो मुंह भर लिया है !
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वो पागल था मगर इतना नहीं था
उफ़ ! किसी की चाहत का असर था !
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अच्छे-खासे लोगों की दुनिया है 'उदय'
फिर भी एक बेईमान, दूजे की शान है !
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सच ! मुश्किल घड़ी में भी, हम खुद को आजमा रहे हैं
जिधर से उड़ रही है आंधी, उधर को चले जा रहे हैं !!

2 comments:

Rajesh Kumari said...

bahut sundar kavita last sher to kamaal ka hai!mere blog par bhi aapka swagat hai!

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ा ही विचित्र विधान है।