"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Thursday, July 7, 2011
... प्रभु आप महान हैं !!
रात के १२.३० बजे रेलवे स्टेशन पर ... सिपाही गणपत अपने दरोगा साहब से बोला, साहब ये कौन महाशय हैं, जो मैले-कुचैले कपडे पहने हुए हैं जिन्हें आप स्वयं ट्रेन में बिठाने आये हैं ... अबे साले चिरकुट, अभी कोई भ्रष्ट अफसर को छोड़ने आये होते तो तेरी "जीब" कुत्ते की तरह लप-लपा रही होती और खुद किसी कुत्ते की "दुम" की तरह आस-पास हिल रहा होता ... मांफ करें हुजूर, मुझसे गलती हो गई ... भ्रष्ट अफसर तो तुझे ट्रेन छूटने के बाद ही भूल जाता, जा दौड़ के जा, अभी ट्रेन छूटी नहीं है, मैले-कुचैले कपड़ों में कोई और नहीं, मेरे सगे मौसा जी है, जा पानी-सानी की एकाद बोतल देकर तू भी आशीर्वाद ले ले, बुरे वक्त में काम आयेगा, ट्रेन छूटने के बाद तो क्या, तुझे आजीवन याद रखेंगे, जब भी निकलेगी तो तेरे लिए "दुआ" ही निकलेगी ... गणपत सुनते सुनते ही लपक कर दौड़ कर सामने की कैंटीन से पानी की बोतल तथा नमकीन का पैकेट लेकर ट्रेन में चढ़ गया, और मौसा जी का आशीर्वाद लेकर ही नीचे उतरा ... उतरते उतरते ट्रेन भी छूट गई, ट्रेन के जाते ही गणपत से रहा नहीं गया, दरोगा साहब को नम आँखों से देखते हुए बोल पडा ... प्रभु, आप महान हैं !!
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3 comments:
ऐसी सेवा ही याद रह जाती है।
बेबाक कथा....अच्छा लगा !!
Mujhe eisa katha padna Achha lagta hai.
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