Thursday, June 23, 2011

... बिना सुर्ख़ियों के, कहाँ अब नींद आती है !!

बा-अदब सरकार ने हमें, सर-आँखों पे बैठाया था
दिन गुजरा, रात हुई, फिर पीट के भगाया भी था !
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किसी किसी दिन तो तुम्हें मरना पडेगा
फिर घुट घुट के क्यूं जीते हो, मरने के डर से !
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इंसानी फितरतें, घड़ी की सुईयां हुई हैं
कब ठहरी दिखीं, हर घड़ी बदली हुई हैं !
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संसार रूपी बाजार में क्या कुछ नहीं मिलता
दौलतें जेब में हों तो, क्या क्या नहीं मिलता !
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क्या खूब बयां किये हैं तुमने मन के भाव रचनाओं में
जज्बातों की नदियाँ, बहती दिखती हैं अल्फाजों में !!
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सुन्दरता, कला, अंगप्रदर्शन, तीनों के अंदाज निराले हैं
गर संगम हो जाए आपस में, तो फिर सोने पे सुहागे हैं !
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अन्ना हो, या हो बाबा, दिग्गी है लड़ने आमादा
मानो या ना तुम मानो, ये ही है असली मुखौटा !
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बाबाजी गर कोमा में होते, तो अब तक बाहर गए होते
उफ़ ! ये सदमे का असर है, जो उन्हें बाहर आने नहीं देता !
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किसी को पीट दो, या खुद पिट जाओ यारो
बिना सुर्ख़ियों के, कहाँ अब नींद आती है !!

2 comments:

Amar Bharti said...

sahi hai sir

प्रवीण पाण्डेय said...

सुर्खियाँ ही तो भरी हुई हैं।