Friday, June 24, 2011

... कुर्बानी का बकरा बनने में हर्ज ही क्या था !

सरकार को मौक़ा मिला था खुल कर रंग जमाने का
मगर अफसोस, अब खुदी को आजमाने पे उतारू है !
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जिन्होंने जान कर ही, कान में तेल डाल, खुशी से रुई हैं ठूंसी
उफ़ ! कहाँ बीमार हैं वो, और कहाँ उनका इलाज है मुमकिन !
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सच ! जब होना ही है हलाल, आज नहीं तो कल
फिर कुर्बानी का बकरा बनने में हर्ज ही क्या था !
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योगी, बाबा, संत, ऋषी, मुनी, एक छोटा सा सवाल है
योग सिखाओ पैसे लेकर, क्या ये भी भ्रष्टाचार है !
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लो फिर जग भिड़ पडा, तेरे-मेरे फ़साने में 'उदय'
क्या रक्खा है, क्या मिला है, कब्र में जाने के बाद !
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सरकार तैयार है तो अन्ना भी तैयार है
भ्रष्टाचार है बीच में, और दोनों आर-पार हैं !
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उफ़ ! सवाल अच्छे हैं पर जवाब कच्चे हैं
पहले भ्रष्टाचारियों के, उड़ाने पर-खच्चे हैं !
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गालों को फुस-फुसा कर, क्या खूब धुन बनाई है
उफ़ ! कर्णप्रिय तो नहीं है, फिर भी बज रही है !
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सच ! चलो हम मान लेते हैं, ये मिट्टी का खिलौना है
मगर मुमकिन नहीं लगता, बिना चाबी के चलता हो !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

आगे आगे देखिये, होता है क्या।