Saturday, June 18, 2011

... न दौलत का झमेला है, और न भीड़ का बखेड़ा है !!

जाने कब तलक खुद को, तुम यूं ही सताओगे
जो हैं सामने उनसे, कब तलक नजरें चुराओगे !
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दिल, दिमाग, ख्याल, खामोशियां, जज्बात, तुम
हमको है खबर, ख्यालों में भी तुम गुनगुनाते हो !
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क्यों सुनते-सुनाते हो, खुदी को हाल--दिल
पल्ला खोल के देखो, कोई चौखट पे खडा है !!
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कौन उलझे, कौन उलझा रहे, फिजूल के अफ़सानों - तरानों में
है सत्ता वही अच्छी, जिसमें समानता सुरक्षा की मिशालें हों !
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हर घड़ी, हर पल, हर सुबह, हर शाम
जिन्दगी है चली, यादों के सफ़र संग !
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गुनाहों की सजा, गर पूंछ लें गुनहगार से
तो समझ लो, सभी बे-गुनहगार निकलें !
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बाबा को छोडो, पर अन्ना अपने आप में अन्ना है
दौलत का झमेला है, और भीड़ का बखेड़ा है !
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कहीं लोकतंत्र है तो है, तो कहीं नहीं है
पर हर कहीं, हुकूमतें हैं, लोक भी हैं !!
...
जब टूट के बिखरना ही है, तो फिर कल क्या, परसों क्या
चलो आज टूट के, टुकड़ों-टुकड़ों में, हम खुद बिखर जाएं !

1 comment:

BrijmohanShrivastava said...

शानदार कविता