मत सोचो
उठो, उठ जाओ
फेंको, उखाड़
जाओ, उखाड़ फेंको
भ्रष्टाचारियों को
तुम, खुद, अपने
खेतों-खलियानों से !
कहीं ऐसा न हो
ये भ्रष्टाचारी
तुम्हें ही, न कहीं
फेंके, उखाड़
और, लूट लें
खेत, खलियान, फसल
सब कुछ तुम्हारा !
ज़रा सोचो
गर, लुट गये, तुम
फिर, भला तुम
क्या करोगे
करोगे, काम खेतों में
तुम्हारे ही
तुम, खुद, मजदूर बनकर !!
2 comments:
भयावह सच को इंगित करती रचना
सुन्दर आह्वान
इंसानियत के लूटेरे सरकार में बैठे हैं..
Post a Comment