"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Wednesday, May 4, 2011
... सागर !!
रोज रचूं मैं रोज गढ़ूं मैं छोटे-मोटे, शब्दों से कांट - छांट कर समेट, सहेज कर छोटी-मोटी, रचनाएं ! रीत न जाऊं डर है, मुझको रोज रोज बूँद बूँद, झर जाने से हूँ मैं सागर एक छोटा-सा शब्दों के संसार का !!
8 comments:
बूँद बूँद, झर जाने से
हूँ मैं सागर
एक छोटा-सा
शब्दों के संसार का !!
..bahut badiya uma prastuti..
अदभुद ... अदभुद
बहुत ही खूब।
Bahut anoothee rachana hai!
बहुत सुंदर प्रस्तुति, धन्यवाद
आपके पास तो शब्दों का अनन्त भंडार है..
.....बहुत सुंदर प्रस्तुति,
Bahut Acha Likha Aapne .....
1 Kadva sach .....
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ सो मेरा मार्गदर्सन करे..
www.anjaan45.blogspot.com
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