उफ़ ! जो ढो रहे हैं खुद को, मुर्दा सा भीड़ में
उनकी बिसात क्या है, जिन्दों से लड़ सकें !
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सुनता हूँ, मैं बहुत बुरा आदमी हूँ
गर चाहो, तुम आजमा लो मुझे !
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'खुदा' जाने तेरी निगाह से क्या झलके है, प्रेम या गुस्सा
उफ़ ! अब तुम ही सुझाओ, क्या समझें, और क्या नहीं !
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चल, घट, बढ़, रुक, मत रुक, चलता चल, आगे
तेरा, मेरा, हम सब का, सच ! यही तो जीवन है !!
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गुनाह कर लिया हमनें, जो तुम्हें हम चाहते रहे
उफ़ ! खता तो की, अब तारीखें भी क़ुबूल हैं हमें !
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क्या करोगे जान कर, तुम मेरी दिल्लगी की दास्तां
तुम किसी हंसी चेहरे पे, और हम वतन पे कुर्बां हैं !!
5 comments:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
वाह।
खूबसूरत कविता ..
अंतिम शेर सबसे अच्छा लगा..
क्या करोगे जान कर, तुम मेरी दिल्लगी की दास्तां
तुम किसी हंसी चेहरे पे, और हम वतन पे कुर्बां हैं !!
पुरी गजल बहुत अच्छी लगी, लेकिन यह शेर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद
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