Friday, April 1, 2011

किसी न किसी को, कुछ न कुछ, बेचने के फिराक में हैं !!

अब कोई हमसे, हमारी ख्वाहिशें पूछे
फिलहाल तो, हम जो चाहे हैं, कर रहे हैं !
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तुम्हें देखे हुए, सच ! एक अरसा हो चला है
यकीनन तुम आज भी उतनी ही हंसी होगी !
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गर जज्बातों को छोड़ दें तो क्या नहीं मिलता दुकानों में
वादे, अदाएं, हुश्न, चुम्बन, जिस्म, जो चाहे खरीद लो !
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धूप, तपिश, गर्मी, आज तो नकाब की बजह हुई है 'उदय'
अब कोई उनका मिजाज पूछे, जो होते ही हैं नकाब में !
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गर आदमी, आदमी ही बना रहता
सच छोटे-बड़े का जिक्र क्यूं होता !
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शहर के लोग हमसे, बेवजह ही खफा-खफा से हैं 'उदय'
फर्क इतना ही है, अपने मिजाज थोड़े जुदा-जुदा से हैं !
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जाने लोग कब तक, संवेदनाओं का व्यापार करेंगे
गर करना ही है तो अखबार छोड़ें, शो-रूम बेहतर होंगे !
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गर 'खुदा' आज जहां को, पैगाम--अमन की सौगात दे
तो सजदा मेरा कबूल हो, वो हंसी मौक़ा तेरे हांथों को दे !
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बुद्धिमानी और मूर्खता देखने देखने का नजरिया है
सुना है अक्सर, कहीं कहीं कुछ मुगालते हुए हैं !
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समय की मार देखो, लोगों ने मोहब्बत की दुकां सजाई है
किसी किसी को, कुछ कुछ, बेचने के फिराक में हैं !!