कुछ ज्यादा तनहा लगी
बजह चाहे जो भी हो
तनहा तो थी, रात, तन्हाई !
कहते, कह भी देते, रात को
पर कहते भी क्या
कसूर जो नहीं था उसका
था तो बस इतना, कि रात थी !
तन्हाई तो बस, अपने सुरूर पर थी
होना भी था, तनहा जो थी
मगर अफसोस,
तनहा होकर भी तन्हाई
बार बार, हौले हौले,
निहार रही थी, मुझे !
होता है अक्सर, कभी कभी
रात, तन्हाई,
और तनहा तनहा सा मन
अब कहें तो, क्या कहें, किसे कहें
रात को, तन्हाई को,
या
खुद को, क्यूं हो तनहा तनहा !!
2 comments:
तन्हाईयो को साथी बनाया होता
तो यूँ ना सफ़र तन्हा होता
नहले पर दहला है वन्दना जी की टिप्पणी..
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