मेरे अंदर ही बैठा था ‘खुदा’, मदारी बनकर
दिखा रहा था करतब, मुझे बंदर बनाकर !
...
कोई कहता रहा कुछ, रूठकर मुझसे
मिले जब, फ़िर वही खामोशियां थीं !
...
अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी न उठाएंगें !
...
सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !
...
अरे वाह, क्या खूब, क्या खूब लिख रहा है
अरे रुको, बिना मरे वाह-वाही कैसे दे दें !
...
क्या करोगे जानकर, तुम वजह रुसवाई की
बस समझ लो, तुम हमें अच्छे नहीं लगते !
...
हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं !!
...
जीते-जी फजीहत, मरने के बाद गुणगान, उफ्फ क्या कहें
साहित्यकारों की ऐसी किस्मत, परम्परा सदियों पुरानी है !
...
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है !
...
चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए
तुम झुकते नहीं, और मै चौखटें ऊंची कर नही पाता !
...
कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं !
...
लिखते-लिखते क्या लिखा, क्या से क्या मैं हो गया
पहले जमीं , फिर आसमाँ, अब सारे जहां का हो गया !
...
'रब' जाने, क्यूं वो आज भी अजनबी ही रहा
मुद्दत से हमें चाह थी, मुलाक़ात हो उससे !
...
तमगे बटोरने की चाहत नहीं रही
यादें बिखेर के चला जा रहा हूँ मैं !
...
फूट डालो और राज करो की नीति पुरानी हुई है 'उदय'
अब नया दौर है, "राज करो तो मिल बाँट कर करो" !!
...
मेरे शहर के लोग, मुझे जानते नहीं
सारे जहां में चर्चा, सरेआम है मेरी !
...
हमने यूं ही कह दिया, क्या माल है
वो पलट कर आ गये, कहने लगे खरीद लो !!
20 comments:
अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी न उठाएंगें !
Bilkul sahi kaha !
.
अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी न उठाएंगें !
बहुत सही !!
bilkul sahee kanha............. likha .........
ek dard ubhar aaya hai ..........
सही बात है..
जीते-जी फजीहत, मरने के बाद गुणगान, उफ्फ क्या कहें
साहित्यकारों की ऐसी किस्मत, परम्परा सदियों पुरानी है !
ये बात सच है, कड़वा और कसैला है।
अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी न उठाएंगें !
जीते-जी फजीहत, मरने के बाद गुणगान, उफ्फ क्या कहें
साहित्यकारों की ऐसी किस्मत, परम्परा सदियों पुरानी है
बिलकुल सही ....नए लिखने वालों का तो किसी को स्तर ही समझ नहीं आता ..
बहुत सुन्दर रचना ... आभार
अरे वाह, क्या खूब, क्या खूब लिख रहा है
अरे रुको, बिना मरे वाह-वाही कैसे दे दें !
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है .
khoobsurat likha hai..
mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
उदय भाई, एकदम खरी बात कही है। बधाई स्वीकारें।
---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
laajwaab likha aapne
waah bahut sahi baat !
बेहतरीन शेर!.........
दुर्भाग्य ही कहेंगे।
''अब क्या लिखें, कितना अच्छा लिखें
लोग बिना मरे, कांधे पे थोड़ी न उठाएंगें!''
कविता तो यहीं पूरी हो जाती है और लोगों ने हाथों-हाथ तो ले ही लिया है.
शानदार.............बेहतरीन
वाह! जाने के बाद कम्पटीशन नहीं रहता है न!
bahut khub.... bahut khub....
savji chaudhari/facebook.
बहुत सुन्दर रचना ... आभार
Post a Comment