जिद्द ! वो हमको भूलने निकले, और खुद को भूल बैठे हैं
जुगनू बनना था किस्मत, घुप्प अंधेरों में अब जगमगाते हैं !
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जब सर्द हवाओं से बदन ठिठुरने लगे, तब मेरे मौन से नहीं
कदम दर कदम आगे बढ़ दहाड़ने से, फिजाओं में गर्मी होगी !
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रूह, लम्हें, सांसे और जुनून
संग-संग हों तो जन्नतें हैं !
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खामोशियों के बंद दरवाजों पे दस्तक देने का डर नहीं
पर तेरी खामोशियों में न जाने कौन सा तूफां ठहरा है !
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न कभी गुमनाम थे, न कभी गुमनाम होंगे
ये हमारे हौसले हैं, जो हर घड़ी दो-चार होंगे !
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उसको आने का, मुझको जाने का
कुछ तो था गम, भूल जाने का !
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नंगों की नंगाई, लुच्चों की लुच्चाई, टुच्चों की टुच्चाई पे
मौन हो गया, कौन हो गया, देश हमारा मौन हो गया !
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दिलों में खंजरों की खनखनाहट है
फिर कैसे खुदा, दिल में जगह लेंगे !
13 comments:
एक से बढ़कर एक, बेहतरीन शेर.
खामोशियों के बंद दरवाजों पे दस्तक देने का डर नहीं
पर तेरी खामोशियों में न जाने कौन सा तूफां ठहरा है !
ये शे’र ऐसी संवेद्य पंक्तियों वाले हैं जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
यह तो देखिये कि देश की अभिव्यक्ति किन हाथों में है।
रूह, लम्हें, सांसे और जुनून
संग-संग हों तो जन्नतें हैं
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
मौन और मृत में कोई अधिक फर्क नहीं होता...
सारे ही मुक्तक अच्छे हैं।
सच को उजागर करती हुई रचना !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
har do lina damdar..
kam shabdon me badi baat...
aapka jwaab nahi uday ji......bahut khoob
lajwaab .....har shabd kuch kah rahe hai
Poori tarah sahmat. Kuchh baat hai ki hasti mitati nahi hamari...
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