नंगे आये थे
सब यहाँ छोड़
नंगे चले जाना है !
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है खबर सबको
दौलतें छूट जायेंगी
लालच में डूबे हुए हैं !
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गरीब भूखा है
रोटी मिलेगी
दुआ जरुर देगा !
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समेटेंगे छिपा रहेगा
बांटेंगे काम आयेगा
मन को खुशियाँ मिलेंगी !
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मेहनत की रोटी
पेट भर देती है
नींद आ जाती है !
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मजहबी बातें
दीवारें बन रही हैं
और इंसान खौफजदा !
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रियासतें - सियासतें
कोठियां और महल
खंडहर हो गए हैं !
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लड़ाई भी चलेगी
और चलते रहेगी
हम इंसान जो हैं !
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थे जानवर पहले
लड़ना, घूरना, गुर्राना
कैसे भूल जाएँ !
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नक़्शे, सरहदें व देश
सब ज्यों के त्यों रहेंगे
बस इंसान गुजरते रहेंगे !!!
22 comments:
उदय जी,
पहले तो मैं बता दू कि आपने "सच्चाई" लिखी है.
प्रत्येक पंक्ति सार्थक एंव सटीक है, सुन्दर रचना.
एक पंक्ति है-
"कभी इससे कभी उससे,
दिल का क्या है,
दिल तो टूटता आया है,
कभी इस पर कभी उस बात पर,
आदमी का क्या है,
आदमी तो बिकता आया है"
आपका आत्मीय धन्यवाद.
आदरणीय उदय जी
मेहनत की रोटी
पेट भर देती है
नींद आ जाती है !
आपकी कविता वर्तमान हालत और जीवन की सच्चाईयों का मिलाजुला लेखा -जोखा प्रस्तुत करती है ...शुभकामनायें
वाह वाह क्या बात है आपके लेखन में
I AGREE WITH KEWAL RAM
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
बढ़िया पोस्ट।
Bahut sundar....! Aakharee panktiyan to kamaal kee hain!
हर हाईकू ...प्रभावशाली ....
ज़िंदगी का सच उजागर करती ...
har 'teen lina' bade kam ki baat kahti hai.
sooktiyan lagti hain...
सबसे पहले आपने सच्चाई लिखी और जान कर भी नासमझ बने इंसानों की दास्ताँ ...!
जीवन और समाज का सच उकेर दिया है आपने।
सत्य को उजागर करती सुन्दर रचना।
sacchhai...haqeeqt bayaan karati sundar rachna.
सही बातें लिखी हैं । एक अलग अंदाज़ ।
बहुत खूब उदय जी, नया अंदाज लगा आज आपका और बहुत अच्छा लगा।
हाइकू के काफी नज़दीक ....
सभी गहन अर्थ लिए हुए ...
यथार्थ दर्शन कराती सुन्दर रचना।
jindagi ki sacchai se rubaru.
यह तो यथार्थ के ज़्यादा क़रीब है।
सत्य लिखा हे जी आप ने, बहुत खुब, धन्यवाद
Hakikat likh dali hai..... prabhavi ban padi hai rachna .....
yatharthparak rachna !
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