अब चंद लम्हें भी, सदियों से हो चले हैं
छाने लगा है जूनून जीने का लम्हे लम्हे में !
.........................................
चलो अच्छा हुआ जो तुम, खिड़की से नीचे उतर आये
बिना दीदार कड़कती ठंड में, शायद हम ठिठुर जाते !
.........................................
कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !
.........................................
एक तेरे ही नाम से, वतन में शान है मेरी
क्या उसको मिटा कर मुझे गुमनाम होना है !
.........................................
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
21 comments:
आदरणीय उदय जी
नमस्कार !
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
......बहुत खूब कह डाला इन चंद पंक्तियों में
शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...... काबिलेतारीफ बेहतरीन
संदेश देती प्रेरक पंक्तियां। हिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत
वाह उदय भाई
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
आभार
अत्यंत सुन्दर पंक्तिया लिखीं हैं, बेहतरीन!
मुझे मित्र के रूप में स्वीकार करें
अरविन्द जांगीड,
कनिष्ठ लिपिक,
ज न वि,
मि. ऑफ एच आर डी
आपका साधुवाद.
@ अरविन्द जांगिड
... aap mitr ban gaye hain ... svaagatam !!!
sirf ye post nahin....aap ka poora blog saandaar hai
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
अब चंद लम्हें भी, सदियों से हो चले हैं
छाने लगा है जूनून जीने का लम्हे लम्हे में ...
वाह छाने लगा है जीने का जूनून लम्हे लम्हे .... बहुत सुन्दर शेर हैं सर ...आभार
बहुत बढ़िया शेर हैं ...एक से बढ़ कर एक ..
कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !
.........................................
एक तेरे ही नाम से, वतन में शान है मेरी
क्या उसको मिटा कर मुझे गुमनाम होना है !
.........................................
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
वाह वाह ये तीनो शेर बहुत अच्छे लगे। बधाई आपको।
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का ! ...itna badhiya ki nihshabd kar diya aapne.....
वाह उदय भाई
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
आभार
उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
बेह्तरीन प्रस्तुति…………हर शेर शानदार्।
कहाँ उलझे रहें हम, मिलने बिछड़ने के फसानों में
चलो दो-चार पग मिलकर रखें, हम नए तरानों में !
एक से बढ़ कर एक बढ़िया शेर...
nice
.
jabardast , dhaansoo rachna !
badhaii!
.
क्या बात है उदय भाई ... शानदार...एक से बढ़ कर एक बढ़िया शेर...
उदय जी बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद
'उदय' अब तू ही बता दे रास्ता इंसान को
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
. बहुत खूब !!!
खा रहे रोटी वतन की, कर रहे सौदा वतन का !
sach baat kahi ha..aise ghadaar bahut hain.
Post a Comment