नंगी थी, क्या चंगी थी
सारे जग में, चल पडी थी !
भाग रहे थे, सिमट रहे थे
खड़े खड़े सब, सूत रहे थे !
मिल गई थी, मिल रही थी
खूब मजे,सब लूट रहे थे !
आ रही थी, जा रही थी
लूट रहे थे, लुट रहे थे !
इधर चली, उधर चली
क्या गजब, मनचली थी !
नांच रही थी, नंगी थी
शीत लहर थी, चंगी थी !
नंगी थी, पर चंगी थी
क्या गजब की ठंडी थी !!!
7 comments:
शब्दों का अजब समां बांधा है आपने।
बहुत खूब, लाजबाब !
......... काबिलेतारीफ बेहतरीन
:)
---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
माया और ब्रह्म या कुछ उलटबांसी जैसा.
पर क्या?
जाकी रही भावना जैसी.....
शब्दों का सुन्दर ..ताल ,लय ,जिससे बहुत सुन्दर रचना ... बार-बार पढ़ना अच्छा लग रहा है ...बधाई
Post a Comment