मैं नेता हूँ, जीता हुआ नेता
अब तुम मेरा क्या कर लोगे !
क्या कर लोगे, बोलो, बताओ
भूल गए क्या ! दारू - मुर्गा !
मैंने तुमको खरीदा था
वोट के खातिर, नोट देकर !
तुमको गले से लगाया था
वरना क्या औकात थी तुम्हारी !
दर दर यूँ ही भटकते फिरते थे
भूल गए क्या ! औकात तुम !
मैंने तुम्हें, मान क्या दे दिया
क्या अब गोद में ही बैठोगे !
याद करो, कुछ तो शर्म करो
दारु-नोट-मुर्गा में बिकते थे !
झंडी लेकर चौक-चौराहे में
जय जयकार के नारे लगाते थे !
आओ, चले आओ, मत शर्माओ
बढ़ो, बढ़ो, पैर पकड़ आशीर्वाद ले लो !
वोट खरीदने, चुनाव जीतने के
सारे हुनर सीख गया हूँ !
अरे हां भई, चुनाव जीत गया हूं
नेता बन गया हूं, मैं अब तुम्हारा !!!
14 comments:
अरे हां भई, चुनाव जीत गया हूं
नेता बन गया हूं, मैं अब तुम्हारा !!!
बहुत खूब उदय जी....
ब्लोगिंग से मन भर गया क्या जो नेता बनने का इरादा है
राजनीति बहुत कडुवा जाब है ,अच्छा भला ब्लोगिंग का काम करते रहिये ,धन्यवाद !
नेता जी के दर्द का बढिया प्रस्तुतिकरण
sahi chitran kiya raajnetaon ka.
sundar kavita....
नेताओं का भांडा फोड़ करती रचना ...
@ अशोक बजाज
... aapse sahmat hoon sachmuch kaduva job hai ... blogging men balle-hi-balle ... aur mauje-hi-mauje hain !!!
लोकतन्त्र की वर्तमान चुनावी झटकों पर करारा व्यंग।
करारा व्यंग्य्।
नेताजी को सलाम।
ब्लॉगिंग को मत देना विराम।
नेताओं का भांडा फोड़ !
नेता बनना आसान नहीं...
और नेता का दर्द नेता ही जन सकता है ....
करारे व्यंग के लिए आभार एवं शुभकामनायें |
नेता सही बोला -जैसी जनता वैसा ही नेता ...जैसे को तैसा
उम्दा व्यंग .... अच्छी प्रस्तुति .
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