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वो कभी छत, तो कभी बालकनी में बैठ बैठ के इम्तिहां ले रहे थे
और हम बे-वजह ही जूनून-ए-मोहब्बत में उनकी गलियों में पास-फ़ैल हो रहे थे !
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वो कभी छत, तो कभी बालकनी में बैठ बैठ के इम्तिहां ले रहे थे
और हम बे-वजह ही जूनून-ए-मोहब्बत में उनकी गलियों में पास-फ़ैल हो रहे थे !
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5 comments:
हा हा ...क्या बात है ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार-परिवार
वाह क्या बात है....
उफ़ ये इम्तहान भी न
मुसीबत है मुसीबत चाहे कॉलेज के दिनों का हो या मोहब्बत का
बहुत खूब।
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