कुछ अजब
कुछ गजबसन्नाटा सा था
चंद रातें
कभी सोतीं
कभी जागतीं
खुली आँखों से कभी
कभी मूंदकर आँखें
मैं देखता सा था
क्या था
क्यों था
कुछ तो था
जिसने मुझे
बेचैन किया था
थी अजब सी
कुछ बेचैनी
क्या थी
क्यों थी
यह सवाल बन
मेरे जहन में
घूमता सा था
चंद रातें
बेचैनी, सवाल
और मैं !
6 comments:
जब समझ नहीं पाते हैं कि क्या करना है तो मेरा मन अक्सर मुझसे ये बातें करता है।
बेहतरीन लेखन
चंद रातें
बेचैनी, सवाल
और मैं !
bahut badhiyaa
antardwand ko pragat karti acchhhi rachna.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
थी अजब सी
कुछ बेचैनी
क्या थी
क्यों थी
यह सवाल बन
मेरे जहन में
घूमता सा था
चंद रातें
बेचैनी, सवाल
और मैं !
Lagta hai,jaise ham bhi kabhi inheen ahsaason se guzare hon!Nihayat sundar!
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