कामनवेल्थ गेम्स का आयोजन ... आयोजन न हुआ मीडिया के लिए मनोरंजन का साधन बन गया है ... अब इसे मनोरंजन इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आजकल देश के सभी न्यूज चैनल्स "आयोजन " के नकारात्मक पहलू पर ही अपना ध्यान केन्द्रित कर देश को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर शर्मसार करने में मस्त है ... क्या उन्हें आयोजन के सकारात्मक पहलू नजर नहीं आ रहे या फिर वो देखना ही नहीं चाहते ... अरे भाई क्यों देखें !!! जब भरपूर मनोरंजन जो हो रहा है ... मेरा मानना तो यह है कि आयोजन समीति की तुलना में भारतीय मीडिया नकारात्मक पहलू दिखा - दिखा कर देश को शर्मसार करने में ज्यादा मस्त नजर आ रहा है !!... अब इसे मस्त या मनोरंजन की संज्ञा इसलिए देना लाजिमी है कि क्या पहले आयोजन समीति की भांति ही मीडिया भी सो रहा था जो अचानक नींद से जाग कर राग अलापने में जुट गया है !!!
मैं यह नहीं कहता कि आयोजन समीति ने जो लापरवाही व अनियमितताएं बरती हैं उसके लिए उसे दण्डित न किया जाए, संभव है भ्रष्टाचार का जो हल्ला हो रहा है उस क्षेत्र में भी सीमाएं पार की गई होंगी ... पर अब, आज वो समय नहीं है कि इन शर्मसार करने वाले मुद्दों को उछाला जाए, अब समय है आयोजन के सकारात्मक पहलू को दुनिया के सामने रखा जाए तथा नकारात्मक पहलू से आयोजन समीति व् सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से अवगत कराया जाए, न कि चिल्ला-चिल्ला कर दुनिया के सामने देश को शर्मसार किया जाए ... भारतीय मीडिया के इस नकारात्मक रबैय्ये को देख कर मुझे अजीब सा महसूस हो रहा है तो स्वाभाविक है कि दूसरे देश के लोग न जाने क्या-से-क्या अंदाजा लगा रहे होंगे !!!
यहाँ एक और पहलू पर चर्चा आवश्यक महसूस कर रहा हूँ वो है कोई भी देश या खिलाड़ी खेल से बढ़कर नहीं हैं ... जिस खिलाड़ी को आना है आये जिसे न आना है मत आये, जिस देश को खेलना है तो आकर खेले जिसे नहीं खेलना न खेले ... किसी नामचीन खिलाड़ी या देश की टीम खेल व खेल भावना से बढ़कर नहीं हो सकती ... अक्सर देखा गया है कि नए खिलाड़ी व नई टीम भी धुरंधरों को पटकनी दे देती है ... इस विषय को उठाना भी जरुरी हो गया था क्योंकि इस मुद्दे को भी मीडिया वाले बेहद गंदे तरीके से उछाल रहे हैं ... मैं चंद प्रश्न आपके समक्ष रख रहा हूँ ... क्या बाथरूम के धूलयुक्त फोटोग्राफ्स, व्यवस्थाओं में अनियमितता, ओवरब्रिज का गिर जाना, छत की टाइल्स का गिर जाना या फिर इन्गलेंड की टीम का होटल में ठहर जाना, देश को शर्मसार कर रहे हैं या फिर भारतीय मीडिया इन मुद्दों को उछाल-उछाल कर शर्मसार करने में मस्त है ???
16 comments:
सत्य वचन है भ्राता
मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए।
वैसे तो मीडिया ठीक-ठाक ही कर रहा है, लेकिन हिन्दुओं के नाम से इनके मुंह में दही जम जाता है...
@ indrani
... क्या बात है !! ... आपका पता-ठिकाना नजर नहीं आ रहा है !!!
इस बारे मै मिडिया ने अपना सही काम किया ओर इन लोगो को नंगा किया वरना हमे ओर आप को केसे पता चलता कि इतना बडा घटोला हो गया??ओर गेमो के बाद अगर मिडिया इन कमीनो को सजा भी दिलाये तो ओर भी अच्छा हो.इगलेंड की टीम होटल मे ठहरी यह भी हमारे नेताओ की की कमजोरी रही होगी, इन्हे सर पर बिठाने की,यह साले अपने देश मै झांक कर देखे,धन्यवाद
@ राज भाटिय़ा
... जब बारात घर के सामने पहुंच गई हो तब यह कार्य शोभा नहीं देता .... पहले कहां था मीडिया ???
उदय जी - "…जब बारात घर के सामने पहुंच गई हो तब यह कार्य शोभा नहीं देता .... पहले कहां था मीडिया ???…"
मीडिया तो यहीं था, लेकिन सौदेबाजी मे लगा हुआ था। सही सौदा पटा नहीं, भरपूर विज्ञापन मिले नहीं, ऊपर से CWG आयोजन समिति का अध्यक्ष कोई "गाँधी" नहीं है, इसलिये अब जमकर चिल्ला-चिल्ली मचाये हैं… :) :)
कलमाडी जी सारी हड्डी-बोटी खुद ही चबाय गये… थोड़ी मीडिया के सियारों के सामने डाली होती तो ये नौबत नहीं आती…
और देश की इज्जत की बात तो करो मती यार… जब बरखा दत्त ताज होटल में मौजूद आतंकवादियों की सही पोजीशन NDTV पर पाकिस्तान को दिखा सकती है तो बाकियों ने क्या बिगाड़ा है भाई… :) :)
वैसे मैं सोच रहा हूं कि 60 साल से "खाओ और खाने दो" की महान परम्परा निभाने वाली कांग्रेस पार्टी से इस बार ऐसी गलती कैसे हो गई कि उसने मीडिया को टुकड़े नहीं डाले…? भई Congress Wealth Games (CWG) में मीडिया का भी हिस्सा होना चाहिये था… :)
देश की चिंता किसे है भाई, सब अपनी अपनी दुकान चमकाने में मस्त हैं।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?
अरे वाह हम तो किनारे बेठे ही लहरे गिन रहे थे, इन गहरी बातो का हमे दुर बेठे इतना ग्याण नही, आप सब लोगो की बातो से सहमत है जी, धन्यवाद
UDAY, SUNDAR, SUVICHARIT LEKH K LIYE BADHAI.
सबके हिस्से की अपनी अपनी कड़ुवाहट।
@ उदय
मालिक कुछ न करे तो बवाल, न करे तो बवाल. सच है कि मीडिया ने इस ओर पहले ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब दिया तो क्या कोई गलती कर दी क्या?
माना कि बारात दहलीज़ पर आ गई लेकिन ये भी तो सोचिए कि दुल्हन इस शादी के लिए रज़ामंद थी की नहीं. वैसे भी ये बाल-विवाह है जिसमें चॉकलेट का लालच देकर दुल्हन को बरगलाया गया है.
देश से बढ़कर कोई खेल नहीं ? हर हाल में आयोजकों को कम से कम देश की इज्जत का ख्याल तो रखना ही चाहिए...सटीक प्रस्तुति....
sarthak post !
उदय भाई,
आज जब हर तरफ देश की कार्यक्षमता पर तथाकथित देशभक्त उंगली उठाते हुए विदेशियों को खुश कर रहे हैं कि " हम भी यही कह रहे हैं " ! इस मानसिकता का विरोध करने कोई सामने आने की हिम्मत नहीं कर रहा है तब आपका यह लेख आशा कि ज्योति दिखा रहा है कि चलो अभी कुछ लोग हैं जो इस मानसिकता के विरोध में खड़े होने का जज्बा रखते हैं !
चार सौ एकड़ यमुना की तलहटी से निकला एक पानी का सांप इन मूर्खों को मिल गया है, एक विशाल स्टेडियम कि फाल्स सीलिंग से निकली एक टाइल जो अक्सर बिजली के लाइनमैन निकाल कर भूल जाते हैं इन्हें कुछ दिन पहले दिखी और दो दिन तक चिल्ल पों मचती रही कि छत गिर गयी !
फूट ओवर ब्रिज गिरने का हादसा दुखद था जिसे एक प्राइवेट फर्म कर रही थी मगर इतने विशाल और बड़े स्केल पर यह दुर्घटना होना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं थी अन्तराष्ट्रीय मापदंडों से होने वाले इन विशाल निर्माण कार्यों में बहुत सावधानी रखी जाती है मगर मानवीय भूलें सिर्फ हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होती रहीं हैं मगर उनकी मीडिया और ब्लागर इतनी जान नहीं निकालते बल्कि उसे प्रयोग और सीखने की एक प्रक्रिया भर मानते हैं !
गंदे बाथरूम का फोटो खींचना हो तो किसी फाइव स्टार में जाकर कर्मचारियों का बाथ रूम देखिये यह भी उसी फाइव स्टार होटल का एक भाग माना जाता है ..!
काश इतनी नकारात्मकता से हम अपना दिल भी टटोलें कि हम खुद कितने गंदे हैं ...कितना आसान है किसी अच्छे कार्य में बुराई निकलना अगर यह देखना हो इस समय ब्लाग जगत की काओं काओं देखिये ! अपने नाम को चमकाने में लगे यह तथाकथित लेखक किस प्रकार देश को नंगा करने में लगे हुए हैं !
अपने ही घर में दावत देकर बुलाये दुनिया भर के लोगों को अपनी नंगई और नीचता किस बेशर्मी से दिखलाई जा रही है ...जिससे यह बेचारे विदेशी दुबारा आने का साहस भी न कर सकें ...
उदय भाई,
आपसे प्रेरित होकर आपको एक पत्र लिखा है ..
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/09/blog-post_28.html
सतीश जी की पोस्ट पहले पढी और यह पोस्ट बाद में। इस देश की मीडिया ऐसे व्यवहार करती है जैसे यह किसी और ग्रह से आए हों? एक तरफ तो यह स्टिंग आपरेशन तक करते हैं दूसरी तरफ पाँच-छ: साल में एक बार भी नहीं बोले और जब देश की ईज्जत बचाने का समय आया तो यह चिल्ला रहे हैं। इनका इमान-धर्म सब पैसा है। सुरेश जी की बात समझ आती है कि कांग्रेस ऐसी भोली तो नहीं कि इन्हें पैसा नहीं दिया होगा, लेकिन जब इन्होंने कलमाडी एण्ड कम्पनी के पैसे का हिसाब लगाया तो बौखला गए कि अरे हमें इतना ही? बस लगे चिल्लाने। देश की ईज्जत को दांव पर लगाने वाले लोगों को कभी भी माफ नहीं करना चाहिए। क्या कोई ऐसा है जो अपने पिता (जिसमें लाख बुराई हो) का ढिंढोरा ऐसा पीटता है? हर आदमी लगा है भारत की गंदी तस्वीरे दिखाने। बीबीसी को तो सबक सिखाना चाहिए।
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