नया चेहरा ...
साहब, मत पूछो -
मां बीमार, भाई थाने में
गरीब हूं, असहाय हूं !
मां मर न जाये
भाई जेल में सड न जाये
मैं अनाथ न हो जाऊं
इसलिये यहां खडी हूं !
जब कुछ रहेगा ही नहीं
तब इस जिस्म का -
क्या अचार डालूंगी ?
बोलो साहब बोलो
क्या दे सकते हो
घंटे, दो घंटे, या पूरी रात
हजार, दो हजार, या दस हजार
पूरे दस हजार ! वाह साहब वाह !!
हाथ जोडती हूं
पहले मेरे साथ चलो
मेरा दर्द मिटा लूं
तब ही तो तुम्हे
खुशियां बांट पाऊंगी !
सीधा थाने, मुंशी से -
बाहर ला मेरे भाई को
ले पकड, दो की जगह ढाई हजार !
भाई बाहर ...
ले सात हजार
दवाई, राशन, घर ले जा !
छोटा भाई
उम्र पंद्रह साल
खडा था, जुंए के अड्डे पे
खैर छोडो ... !
चलो साहब ...
आप फ़रिश्ते हैं
सर-आंखें, लाजो-हया
तन-मन, रूह-जिगर
खिदमत में, हाजिर हैं !!
आप फ़रिश्ते हैं
सर-आंखें, लाजो-हया
तन-मन, रूह-जिगर
खिदमत में, हाजिर हैं !!
15 comments:
इस परिस्थिति मे तो यदि गुहार लगाने वाले को सहारा मिल जाये तो वह फ़रिश्ता ही हो सकता है उसके लिये।
सामायिक .............
कविता में मार्मिकता है ................
आप फ़रिश्ते हैं
सर-आंखें
लाजो-हया
तन-मन
रूह-जिगर
खिदमत में
हाजिर हैं !!!
Aah!
एक सच ऐसा भी.....बहुत संवेदनशील रचना
बहुत मार्मिक लेकिन आज का सच
आज का कडुआ सच ,ब्लॉग के नाम की सार्थकता |
इस रचना की सच्चाई मैं बखूबी समझ सकता हूं। अच्छी पोस्ट।
बिलकुल सच्ची बात
uff..........ek kadva sach bayan kar diya............behad marmik.
कविता में मार्मिकता है ................
.........................................................................................................................................
मार्मिक ... अत्यंत मार्मिक
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना.
परिस्थिति जो न कराए वो कम है ... मार्मिक ... बहुत ही स्पष्ट .. पर कड़ुवा सच ....
मार्मिक चित्रण
बहुत मार्मिक, भेदती-छेदती हक़ीक़त। तल्ख़ अहसानमन्द बयान।
Post a Comment