आये दिन सुनने व देखने को मिलता है कि फ़ला महिला संघठन ने, फ़ला पार्टी ने फ़िल्मों में हो रहे अश्लील व भद्दे प्रदर्शन का जमकर विरोध किया ... घंटों नारेबाजी चली ... फ़िल्म का प्रदर्शन नहीं होने दिया ...पोस्टर फ़ाड दिये गये ... फ़ला शहर, फ़ला राज्य में फ़िल्म रिलीज नहीं होने देंगे ... बगैरह ... बगैरह ... लेकिन क्या फ़र्क पडता है कुछ समय की "चिल्ल-पों" ...फ़िर वही, जो होता आया है, जो हो रहा है ... फ़िल्म रिलीज... हाऊसफ़ुल ... ब्लैक टिकिट की मारा-मारी .... फ़िल्म ने आय के नये कीर्तिमान बनाये ... सुपर-डुपर हिट ... करीना ने क्या काम किया ... क्या सीन है ... मजा आ गया ...
... अब क्या कहें फ़िल्म तो फ़िल्म हैं बनते आ रही हैं बनते रहेंगी ... अंगप्रदर्शन ...चलता है थोडा-बहुत तो हर फ़िल्म में रहता है ये कोई आज की बात नहीं है ३०-४० साल पहले की फ़िल्मों मे भी देखने मिल जाता है ... आज करीना... कैटरीना ...सुश्मिता ...प्रियंका ... ऎसा कुछ अलग नहीं कर रहीं जो मुमताज ...बैजयंती माला ...सायरा बानो ने नहीं किया ... ये बात और है कि पहले सब "स्मूथली" चलता था पर अब पहले विरोध बाद में सब "टांय-टांय" फ़िस्स ...विरोध भी इसलिये कि विरोध करना है ....
... खैर छोडो ये सब तो चलते रहता है ...छोडो, क्यों छोडो ... अरे भाई, जब फ़िल्म बनाने वाले, फ़िल्म में काम करने वाले, फ़िल्म देखने वाले ... सब खुश, तो बेवजह का विरोध क्यों ... चलो ये सब तो ठीक है फ़िल्मों में विभत्स हत्याएं, दिलदहला देने वाले बलात्कार के द्रष्य, अंग-भंग के क्रुरतापूर्ण द्रष्य, अजीबो-गरीब लूट-डकै्ती के कारनामे, बच्चों का क्रुरतापूर्ण शोषण, तरह तरह के आपराधिक फ़ार्मूले दिखाये जाते हैं उनका विरोध क्यों नहीं ...क्या इन सीन/द्रष्यों को देखकर रोंगटे खडे नहीं होते! क्या इस तरह के फ़िल्मांकन को देखकर मन विचलित नहीं होता ... क्या फ़िल्मों में सिर्फ़ अंगप्रदर्शन के द्रष्य ही दिखाई देते हैं ! ...ठीक है विरोध जायज है पर अंगप्रदर्शन का ही इतना विरोध क्यों, किसलिये !!
16 comments:
nice
फ़िल्मों में विभत्स हत्याएं, दिलदहला देने वाले बलात्कार के द्रष्य, अंग-भंग के क्रुरतापूर्ण द्रष्य, अजीबो-गरीब लूट-डकै्ती के कारनामे, बच्चों का क्रुरतापूर्ण शोषण, तरह तरह के आपराधिक फ़ार्मूले दिखाये जाते हैं उनका विरोध क्यों नहीं .....aapka kahanaa vaajib hai.ang-pradarshan yadi soundary ko pragat kare to anuchit nahi lekin aslilata anuchit hai our aslilata sirf ang pradarshan se hi nahi hota vina ang dikhaaye bhi aslilata parosee jaa sakatee hai our ang dikhaakar bhi aslilata se bachaa jaa sakataa hai.
Sahi kaha aapne...virodh karne ke liye kayi vishay hain...mere vicharse yah 'ang pradarshan' wala virodh janke karvaya jata hai, film ki prasiddhi ke liye!
अच्छा आलेख!
ab shiv ke khule trinetra kee tarah aap satya likh rahe hain..
लिमिट में हर चीज़ मज़ा देती है ...
uttam..lekhan
लिमिट में हर चीज़ मज़ा देती है .
रश्मि प्रभा जी
आपकी टिप्पणी ने मेरा मान व उत्साह बढाया है, बहुत बहुत धन्यवाद ... आभार ।
श्याम कोरी 'उदय'
निज इच्छाओं और सामाजिक दायित्व बोध के दरम्यान अतिक्रमित सीमा रेखायें हैं फिर भला हम क्या कहें ?
परहेज नहीं पर अतिशयता नहीं होनी चाहिये और फिर यह विरोधप्रदर्शन तो विरोध के लिये होता ही नही है
vyavsaay !
tarkir hai... badiya likha hai... badhai ho...
वाकई आपके ब्लॉग के नाम की तरह है यह कडुवा सच ... ज्वलंत मुद्दा ले कर आये हैं आप...
आपका
अर्श
अंगप्रदर्शन ...चलता है थोडा-बहुत तो हर फ़िल्म में रहता है ये कोई आज की बात नहीं है .............. ये बात सही है लेकिन आज के निर्मातायो ने तो सारी सीमाए पार कर दी बेचारे दर्शक .................देखने को है मजबूर
अंगप्रदर्शन ...चलता है थोडा-बहुत तो हर फ़िल्म में रहता है ये कोई आज की बात नहीं है .............. ये बात सही है लेकिन आज के निर्मातायो ने तो सारी सीमाए पार कर दी बेचारे दर्शक .................देखने को है मजबूर
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