शेर - 70
मेरे अंदर ही बैठा था ‘खुदा’, मदारी बनकर
दिखा रहा था करतब, मुझे बंदर बनाकर।
शेर - 69
कब तलक तुमको अंधेरे रास आयेंगे
झाँक लो बाहर, उजाले-ही-उजाले हैं ।
शेर - 68
छोड के वो मैकदा, तन्हा फिर हो गया
हम दोस्त नहीं , तो दुश्मन भी नहीं थे।
शेर - 67
हम भी करेंगे जिद, अमन के लिये
देखते हैं, तुम कितने कदम साथ चलते हो।
शेर - 66
दिखाते हो वहाँ क्यूँ दम, जहाँ पे बम नही फटते
बच्चों के खिलौने तोडकर, क्यूँ मुस्कुराते हो।
12 comments:
बहुत ही उम्दा शेर , पहल शेर तो हम सब की जिन्दगी से मिलता जुलता है.
sabhi bahut badhiyaa sher hai.
sabhi bahut badhiyaa sher hai.
badhiya aashaar...
मेरे अंदर ही बैठा था ‘खुदा’, मदारी बनकर
दिखा रहा था करतब, मुझे बंदर बनाकर।
लाजवाब लिखा है आपने ..................... जीवन का दर्शन ........... खूबसूरत शेर
छोड के वो मैकदा, तन्हा फिर हो गया
हम दोस्त नहीं , तो दुश्मन भी नहीं थे।
वाह...वाह...बहुत खूब.....!!
दिखाते हो वहाँ क्यूँ दम, जहाँ पे बम नही फटते
बच्चों के खिलौने तोडकर, क्यूँ मुस्कुराते हो।
लाजवाब.....!!
दिखाते हो वहाँ क्यूँ दम, जहाँ पे बम नही फटते
बच्चों के खिलौने तोडकर, क्यूँ मुस्कुराते हो।
bahut hi umda sher!
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही बढ़िया शेर लिखा है आपने ! बहुत खूब!
भाई उदय जी टिप्पणी के लिये आत्मिक आभार. आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. आपके अन्दर बहुत कुछ है. आपकी अनमोल बातें मुझे बहुत अच्छी लगीं. शेर कहने के लिये क्या किसी को उस्ताद भी बनाया है/सलाह लेते हैं यदि नहीं तो एक बार www.subeerin.blogspot.com को देखें आदरणीय सुबीर जी वहां ग़ज़ल की क्लास चला रहे हैं. आपको बहुत फ़ायदा होगा आप देखेंगे कि आप कैसे निखर कर आते हैं.
माफ़ करियेगा मैंने बिना मांगे मशवरा दिया है.
कारण मुझे आपके अन्दर बहुत कुछ दिखाई दे रहा है.
bahut sundar boss.
sabhi sherio ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya ..
behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
कब तलक तुमको अंधेरे रास आयेंगे
झाँक लो बाहर, उजाले-ही-उजाले हैं ।
lajvab sher
har sher lajawaab.
mere blog par aane ke liye dhanyavaad
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