Sunday, March 1, 2009

शेर - 13

क्यों शर्म से उठती नहीं, पलकें तुम्हारी राह पर
फिर क्यों राह तकते हो, गुजर जाने के बाद।

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

अजी कोई दिल की बात तो कहना चाहता है कि... मुई शर्म कदम रोक लेती होगई...
बहुत ही सुंदर शॆर कहा आप ने.
धन्यवाद

daanish said...

saare sher apne aap mei misaal haiN
apni-apni daastaan khud keh rahe haiN. . . .
badhaaee........
---MUFLIS---

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत बढिया सर अनुपम रचना

Prakash Badal said...

उदय भाई आप तो कमाल पर कमाल करते हो वाह