Saturday, December 6, 2008

शेर - 1

हुई आँखें नम, तेरे इंतजार में 'उदय'
कम से कम, अब इन्हें छलकने तो न दो ।

6 comments:

BrijmohanShrivastava said...

इंतज़ार में आँखे नम क्यों हुई भाई / हमारी तो पुरानी यादों में हुआ करती हैं / इंतज़ार में तो पलक पांवडे विछाना पड़ता है /रस्ते में कांटे लगे हुए गुलाब के फूल विचाना पढता है और ये कहना पड़ता है कि ""इन्तहा हो गई इंतज़ार की / साथ में यह भी कि "" न उनके आने का वादा , न यकीं न कोई उम्मीद ,मगर क्या करें गर न इंतज़ार करें

"अर्श" said...

bahot hi umda sher likha hai aapne .. meri gujarish hai ke aap se puri ghazal ki shakla den....

regards
arsh

Bahadur Patel said...

bahut achchha hai.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा िलखा है आपने । जीवन के सच को प्रभावशाली तरीके से शब्दबद्ध िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है -आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

बहुत अच्छा प्रयास ..........लिखते रहिये

आपको मेरी शुभ-कामनाएं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भूखी अँखियाँ,प्यासी अँखिया,
जाने क्या-क्या होती है ?
जब दिल में पीड़ा होती ,
ये चुपके-चुपके रोती है ।